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बादशाह हुसैन रिजवी का दुख / स्वप्निल श्रीवास्तव

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आप बादशाह हुसैन रिजवी को
कत्तई नही जानते
वे राजीव गांधी की तरह
मशहूर आदमी नही हैं
बादशाह हुसैन रिजवी अफ़सानानिगार है
वे शहर के सब्ज़ीमण्डी मुहल्ले में
सन 1962 से तशरीफ़ रखते है
यह सन् मुझे इसलिए याद है कि
इस सन् में भारत-चीन का
युद्ध हुआ था
उसके थोड़े दिन बाद
भारत-पाकिस्तान की लड़ाई
हुई थी
जंग क्यों हुई थी यह
आम आदमी की तरह बादशाह हुसैन रिजवी
नही जानते थे
युद्ध उनका प्रिय विषय भी
नही था
उनकी दिलचस्पी पाकिस्तान में भी
नही है
सिवा इसके कि हसीन और मशहूर
गायिका नूरजहाँ वहाँ रहती हैं
बादशाह हुसैन रिजवी और नूरजहाँ
अलग-अलग शहरों में जवान
हुए
एक साथ दोनों के चेहरों पर
झुर्रियों के जंगल उगे होंगे
नूरजहाँ को सारी दुनिया
जानती थी और बादशाह हुसैन
रिजवी को ?

बादशाह हुसैन रिजवी के पास
नूरजहाँ के हज़ारों क़िस्से हैं
वे क़िस्से बहुत बढियां ढंग से
सुनाते हैं
क़िस्सा कहते-कहते काढ़ लेते हैं
आदमी का कलेजा

वे रेलवे में काम करते हैं
लेकिन दफ़्तर में कम पाए
जाते हैं
उनका अड्डा अपने या दोस्तों
के घर खूब जमता है
बाक़ी समय में वे क़िताबों
के साथ उलझे रहते हैं
रोज़मर्रा की समस्याएँ उन्हे
विचलित करती हैं
जब मुल्क में दंगा होता है
वे गुस्से में आ जाते हैं
वे सोचते हैं इतनी तरक्की के बावजूद
आदमी कसाई क्यों हो जाता है
और शहर को एक बूचड़खाने में
बदल देता है
वे दंगों के पीछे छिपे हैवान का
चेहरा पहचानते हैं
बादशाह हुसैन रिजवी हिन्दू अथवा
मुसलमान नहीं, एक इनसान हैं
लेकिन हिन्दुओं के मुहल्ले में उन्हें
मुसलमान समझा जाता है
यही बादशाह हुसैन रिजवी का
दुख है
जिसे दिल्ली के शाही इमाम और
विश्व हिन्दू परिषद के आका नही
समझ पाते ।