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बापू / कलक्टर सिंह ‘केसरी’

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कइसे मानीं हम जोत चान-सूरुज के उतरल माटी में ?
कइसे मानीं भगवान समा गइलन मानुस के काठी में ?
जर गइल फिरंगिनि के लंका, बाजलि आजादी के डंका,
अइसन अगिया बैताल जगवलन कइसे एक लुकाठी में ?

कइसे मानी हम बापू के परगास नजर से दूर भइल ?
अबहूँ बाड़न ऊ आसमान के चमचमात जोन्हीं अइसन !
जे भूल गइल बापू के उनका खातिर घुप्प अन्हरिया बा।
जे उनुकर नीति निबहले बा उनुका खातिर दुपहरिया बा।

जेकरा भीतर के आँख रही, ऊ बापू के अबहूँ देखी।
जे आन्हर बा उनुका खातिर त परबत बनल देहरिया बा।
हम समुझत बानीं मौत खेल ह, एगो आँखमिचौनी सन।
बापू रहलन इंसान बात ई लागत अनहोनी अइसन।