बापू फिर आओ एक बार / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि
बैठे युद्धों के कगार पर
मानव का बल क्षीण हुआ है
आज मानवता
निर्बल, नि:स्वर. निस्तेज
अशरण है
जगत के इस बंजर क्यारी में
बेल खुशियों की उगाने आओ
और आकर पीड़ित विश्व को
दो नव शक्ति की ललकार
बापू फिर आओ एक बार ।
मानव की दबाई गई
चुसी गई चेतना को
कौन देगा विश्वास यहाँ ?
कौन मिटाएगा अशांति
और भय का घोर अंधियारा ?
त्राण दिलाने हिंसा से कब आओगे
सत्य अहिंसा के दिनमान ?
आओ
नये संसार का रच डालो नये आधार
बापू फिर आओ एक बार ।
यहाँ दलित-दुखियों के
त्राता कहाँ ?
कौन यहाँ पोंछेगा विवश अश्रुकण असहाय जनों के ?
है युग के नयनों का तारा
जन जीवन को नव आलोक देने के हेतु
फिर ले लो अवतार
बापू फिर आओ एक बार ।
आज विश्व में स्वार्थता,
पृथकता
और क्षुद्रता का फैल रहा है अंगार
सत्य की सत्ता मिट रही है
पीड़ितों की सहायता छिन रही है
सम्पत्ति की सत्ता के आगे
रौंदा जा रहा है आत्मा का संसार
बापू फिर आओ एक बार ।
है यहाँ कोई प्रकाश-पूरित व्यक्तित्व
जो लोगों में सच्चाई की लौ जगा दे ?
जो अपने त्याग से
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना
लोगों में भर दे
चारित्रिक हीनता की नींव हिला दे
कुण्ठाओं को मार भगा दे
अनास्था और अश्रद्धा की
कालिमा पोंछ दे ?
अब कौन यहाँ पहनाए मानवता के गले में हार
बापू फिर आओ एक बार ।
कौन यहाँ निज चिंतन को
कर्म की मथनी से मथ कर
कर पाता है उन्नयन जगत का
अपने पवित्र आचरण द्वारा
कौन कर पाता है
स्थापना उत्तम आदर्श की
है चरितनायक
इंसानी कारवां के नायक
फिर कब सुनाई देगी
वह मानवता के
अमर-आदर्श की झंकार
बापू फिर आओ एक बार ।