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बाबा / संवेदना / राहुल शिवाय
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आय कल्पना हमरोॅ मनोॅ के
बाबा लग रही-रही पहुँचाबै,
बाबा साथैं बितलो छन सब
घूरी-घूरी के याद छै आबै |
द्वारी पर छै बैठलोॅ बाबा
पीन्हीं के चश्मा पोथी खोललकै,
हमारा वहाँ बोलाय केॅ बाबा
पास बिठाय केॅ गणित सिखलकै |
हमरोॅ मोॅन मेॅ इत-उत रहे
पास जैयै की नै जैयै ?
पढ़ै के हमारा मोॅन करै नै
ई बाबा केॅ केना बतैयै ?
मोॅन करै छै फेनु से हम्मे
हुनका गोदी मेॅ चढ़ी जैयै,
पान लगाय केॅ हुनका साथें
फेरु हम बाजार केॅ जैयै |
रचनाकाल - 24 मई 2006