बाबाक भरोसे / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’
बाबाक भरोसेँ जे कयलनि फौदारी
जूड़नि ने माँड़ मि´ा ताकि रहला ताड़ी।
चिचिआइते रहला जे अल्ला हो अल्ला,
से चटकन लगलनि जे फूलि गेलनि कल्ला।
जकड़ल छथि युद्धक उन्माद सनक रोगसँ,
छुटियो ने सकितनि बिनु ज्ञानझाक योगसँ।
नाम की तँ निकसन आ करनी अधलाहे,
बाँचि गेल नाव, मुदा डूबल मलाहे।
जाहि समय बंगलामे मचलै’ तबाही,
तहिया की अक्किलपर पड़ल छलनि लाही।
बतहा एहि कूकुरकेँ दैत रहला टुकरी,
मारि खा पड़यलनि तँ मूँह भेलनि चुकरी।
चेला पिटयलनि तँ लय सातम बेड़ा,
बंगालक खाड़ीमे खसा देलनि डेरा।
दूरेसँ बूझि गेलनि ई सबटा रूसो,
हनछिन जँ करितथि तँ लागि जैतनि घूसो।
नाङड़ि पटकि कय रहि गेलथिन ई काका,
ढेका तँ छनिहेँ ने, चल गेलनि ढाका।
नाक भरल नकटी आ आँखि भरल काँची,
चल गेलनि ढाका आ जैतनि कराँची।
यैह यैह छथि याहिया आ वैह-वैह छथि भुट्टो
पुनि खटपट करता उपाड़ि लेबनि खुट्टो।
रचना काल 1971 ई.