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बारहा गोर दिल झुका लाया / मीर तक़ी 'मीर'
Kavita Kosh से
बारहा<ref> प्राय:</ref> गोर<ref>क़ब्र</ref> दिल झुका लाया
अबके शर्ते-वफ़ा बजा<ref>वफ़ादारी की शर्त निभाई</ref>लाया
क़द्र<ref>मोल</ref> रखती न थी मताए-दिल<ref>दिल जैसी वस्तु</ref>
सारे आलम<ref>जहान</ref> को मैं दिखा लाया
दिल कि यक क़तरा-ए-ख़ूँ नहीं है बेश<ref>दिल जो कि रक्त की एक बूँद से अधिक नहीं है </ref>
एक आलम<ref>सारे ज़माने एक</ref> के सर बला<ref> तबाही मचा दी</ref> लाया
सब पे जिस बार<ref>बोझ,भार </ref> ने गिरानी<ref>भारी लगा </ref> की
उसको यह नातवाँ <ref>कमज़ोर </ref> उठा लाया
दिल मुझे उस गली में ले जाकर
और भी ख़ाक में मिला लाया
अब तो जाते हैं बुतक़दे<ref>मूर्तियों वाले मंदिर को</ref> ऐ ‘मीर’!
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया
शब्दार्थ
<references/>