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बारिश की प्रतीक्षा / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
सुबह उठते ही बारिश की प्रतीक्षा शुरू हो जाती है
पेड़ों को भी बारिश की प्रतीक्षा है
चिड़ियों को भी
झुलसे हुए पहाड़ों को भी
और सूखे हुए हृदय को भी
कहाँ से आते हैं बादल के टुकड़े
अठखेलियाँ करते हैं धूप के साथ
कहाँ चले जाते हैं
बादल के टुकड़े
शाम को कहते हैं
आज भी बारिश नहीं हुई
शायद कल हो
इसी आशा के साथ
उमस की नींद में गुम होने की
कोशिश शुरू हो जाती है
फिर सपने में दूध की बारिश का दृश्य
पेड़ों का झुरमुट और झरने
लहराते बाल और खिलखिलाहट का संगीत
ताज़गी से भरपूर हवा ।