भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाल कविता / उमेश प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आऊ एगो बात एने सुन रे बुतरुआ ।
चीना से चावल बन, मत बन मडुवा ।।
भोरे-भोरे पापा के संग
मत पिह चाय रे,
दही, चीनी, लाय, दूध,
खूब खो मलाय रे ।
माड़ मट्ठा खूब पियऽ
साठी, चाऊर, लडुवा ।
आऊ एने बात एगो सुन रे बुतरुआ ।।
जात धर्म गुरु ग्रंथ
बझिहा न कोनो पंथ,
प्रेम के आनंद मे जे
जीयऽ हका ओहे संत
अपन पराया समझाने
वाला रंडुआ।
आऊ एने बात एगो सुन रे बुतरुआ ।।
गुरु माय-बाबू जी के
गोड़ लगऽ भोरे-भोरे,
मन मैल मिट जइतो
सचमुच थोड़े-थोड़े,
चोरी जे सिखावे मरे
ओहो मुँहजरूआ ।
आऊ एने बात एगो सुन रे बुतरुआ ।।
नेता जी के जय नय,
एस.पी. के भय नय,
देश-गाँव जय-जय,
एकरे में प्रेम मय ।
गाँधी बाबा नेहरू के
खेल ले रे फगुआ ।
आऊ एने बात एगो सुन रे बुतरुआ ।।
दुःख मे नय आह कर,
देर से बियाह कर,
एगो भाय बहिनी
जादे नय परवाह कर ।
पेन्हे लगी मखमल,
खाय लगी हलआ ।
आऊ एने बात एगो सुन रे बुतरुआ ।।
सच बड़ी पुनवान
झूठ बड़ी पाप हे,
असली जे भगवान
गुरु-माय-बाप हे ।
जिनगी के गलती के
झाँट मारऽ झडुवा ।
आऊ एने बात एगो सुन रे बुतरुआ ।।