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बाल की खाल / राम करन
Kavita Kosh से
टायँ-टायँ करके सुग्गा ने,
खूब बजाया दिनभर गाल।
कौआ बोला - ये क्या भाई,
अपने मुँह मियां मिट्ठूलाल!
मधुमक्खी के छत्ते में,
बन्दर जी की गली न दाल।
भालू उसपर और चिढ़ाया,
ये मुँह और मसूर की दाल!
जंगल की चर्चा में एक दिन,
निकला बहुत बाल की खाल।
खुसर-फुसर हो गई शुरू,
कुछ तो काली होगी दाल।