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बाहर खेती-बारी रख / उदयप्रताप सिंह
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बाहर खेती-बारी रख
आँगन में फुलवारी रख
थोड़ी दुनिया दारी रख
प्यार मुहब्बत जारी रख
यादें मधुर संजोने को
मन में एक अलमारी रख
ठहर मुसाफिरखाने में
चलने की तैयारी रख
भूत, भविष्यत जाने दे
वर्तमान से यारी रख
डंडी देख तराज़ू की
मन का पलड़ा भारी रख
चमक देखनी हीरे की
पृष्ठ भूमि अंधियारी रख
उदय ह्रदय के अनुभव सुन
ये बातें अखबारी रख