भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाहाना / सांवर दइया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी को मारने के लिए
आदमी ढूंढ़ता है-
गाय
सूअर
या सिर के बाल
धरती लाल होने के बाद
पछतावा करता है आदमी
कुत्तों की मौत मरे आदमियों को देख कर
बंदोबस्त करता है
आगे फिर नहीं मरे आदमी
आदमी नहीं मरने के इस बंदोबस्त के लिए
फिर से मरते हैं आदमी
अब मरे हुए आदमियों की मौत का
बदला लेने के लिए
शुरू होता है एक अंतहीन युद्ध
आगे से आगे चलता रहता है
यह जानते हुए भी
कि नहीं चलना चाहिए !

आदमी के भीतर बसे दरिंदे को
बस कोई न कोई बाहाना चाहिए !


अनुवाद : नीरज दइया