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बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम।
सुनो, इस क़दर भी न टूटेंगे हम।

किये जा रे पूँजी सितम दर सितम।
इन्हें शाइरी में करूँगा रक़म।

जो रखते सदा मुफ़्लिसी की दवा,
दिलों में न उनके ज़रा भी रहम।

ज़रा सा तो मज़्लूम का पेट है,
जो थोड़ा भी दोगे तो कर लेगा श्रम।

जो मैं कह रहा हूँ वही ठीक है,
सभी देवताओं को रहता है भ्रम।

मुआ अपनी मर्ज़ी का मालिक बना,
न अब मेरे बस में है मेरा क़लम।