भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिखरल फूल / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल के सौखीन हम
लगएले रही अगना में
एगो पेड़ गुलाब के।
एकदिन देखली-
ओकर डार में लगल रहे
हरिहर पत्ता के बीच
लाल कली गुलाब के।
रात आऊर दिन के बीच
कली विकसल गुलाब के,
भंओरा मंडराइत रहे
अगल-बगल आगे-पीछे
आऊर मुसकाइत रहे
फूल एगो गुलाब के।
समय बीतल फूल पिघलल
दे देलक जगह पराग के।
भंओरा मुसकएलक/इठलएलक
देख सूरत गुलाब के।
मकरन्द पान क के
उड़ गेल ऊ खोज में
दोसर फूल गुलाब के।
आएत भंवरा कहियो
लउटके फेनू इहे डार पर
इहे अभिलास लेले
लोर पीअइत रहल
फूल ऊ गुलाब के।
समय के गति संग
बढ़ल गति बेआर के
बिखर गेल जमीन पर
फूल ऊ गुलाब के।