भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिचौलिया / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
फिरै
बिनां पग
आंख,
सूंघै
ठौड बैठो
नाक,
सुणै
जग्यां ऊभा
कान,
कोनी करै
ऐ
थूल किरिया,
संचरै
आं पाण
बिरम मन !