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बिना तेल बिन बाती / रामप्रसाद कोसरिया

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बिना तेल बिन बाती
जीवरा जारी दिन राति
जीनगी अंधियार लगे रे

बिन बरसा चुहय
आंखी के ओरवाति |
विधाता तोर महिमा, अपरमपार लागे रे

बुड़ मरे जनता,
नेता मांगे नहकाई
सरम चढ़े महंगाई, दुखिया सब संसार लागे रे