भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना तेल बिन बाती / रामप्रसाद कोसरिया
Kavita Kosh से
बिना तेल बिन बाती
जीवरा जारी दिन राति
जीनगी अंधियार लगे रे
बिन बरसा चुहय
आंखी के ओरवाति |
विधाता तोर महिमा, अपरमपार लागे रे
बुड़ मरे जनता,
नेता मांगे नहकाई
सरम चढ़े महंगाई, दुखिया सब संसार लागे रे