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बिना बापू रै म्हैं / राजेन्द्र जोशी

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म्हैं गुण मानूंला
म्हारी तडफ़ नै समझ सकै
म्हैं मान देवूंला पतियारो राखै
नीं बताय सकै, म्हारी मा
मा कैवै छोड-छोड
म्हैं हूं थारा माईत।

आ म्हारी भूल रैयी
नव मईना
नीं समझ सकी, नीं जाण सकी

म्हैं मा री प्रीत नीं उजाड़णी चावूं
फकत जाणणो म्हारो धरम है
उण नाजोगै मिनख नै
जकै मा री आबरू री रुखाळी कोनी राखी
स्यात खसम नीं बण्यो
अेक लुगाई रो।
मा नीं जाणै
प्रेम रो अरथ
प्रेम कर्यो हुवतो
जे कोई अेक मिनख सूं
म्हारै आवण सूं पैली
कर लेवती प्रेम
म्हैं नीं होवती
समाज री धिक्कार।

म्हनै तो हो मा सूं प्रेम
आवण सूं पैली
पण मा नै नीं हो म्हारै सूं प्रेम
आवण सूं पैली।

अबै म्हैं करणी चावूं
म्हारै बापूजी सूं प्रेम
फकत सुपनो है म्हारो
जिको कदैई साच नीं हुवैला।

फकत म्हारी मा दोसी नीं है
नानी मा रो आदेस मानणो हो
आज तांई म्हारी मा नीं जाणै
आपरै बापूजी नै।

कदैई नीं लगाई
माथै ऊपरां लाल-हरी टीकी
नीं बणी कदैई द्रौपदी
म्हनै जेळ देखाळी तो नीं ही
फकत जेळ री हवा खवाय दीनी
दो बार आपरै सागै
म्हारै आवण सूं पैली।

कदैई मा रो थाकैलो
दूर नीं होवण दीनो
नानी मा
मा उदास हुवती जद
उणरी मा बेटी नै
दोय गुटका पायÓर
उतार देंवती म्हारी मा री अमूजणी।

म्हैं जद-जद पूछूं
म्हारै बापू रो ठिकाणो
मा नै दाय नीं आवै
म्हारो पूछणो।
कैवण लागै—
थूं पैली बडी हुयज्या
घणा ई बाप आय जासी थारा।

म्हनै नीं चाईजै मा
घणा सारा बाप
म्हैं सोधणी चावूं
मिळणी चावूं उण बाप सूं
जिको ओळखै आपरी बेटी नै।

नीं बदळै म्हारी मा,
अर थारो नीं
थारी मा रो गिणीजैला कसूर
सेवट म्हारै बापू रो नीं होवणो।
म्हैं मानूं
मा रो हुकम मानणो हो थनै
पण माफ करीजै
म्हैं नीं मानूंली
म्हारी मा
थारो हुकम।
म्हैं मा नीं बणूं
म्हारै टाबरां री
बिना बापू री मा...
म्हारै सागै
थारो आवणो
खाली हुवतै जीवण नै
भरतो लखावै।

हाल तांई सैमूधो
भरियो नीं है
रोज भरीजतो-भरीजतो
नूंवी ठौड़ बणावै म्हारै मांय।

म्हैं नीं जाणूं
आ ठौड़ कियां बणै
अर कियां भरीजै
बिना सुपनां रै।

म्हैं नीं समझ सक्यो
अजेस इण साची प्रीत नै
जिकी म्हारी आतमा नै
रोज भटकण सूं रोकै म्हारै मांय।
म्हैं बच्योड़ो रैयो
खाली नीं हुयो
आधी सदी
आवती आधी सदी खातर
थारै होवण सूं।