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बिम्ब उभरेगा / राम सेंगर
Kavita Kosh से
यह घरोन्दा घास का ,
रहेगा परिवर्त बनकर
समय के इतिहास का ।
फड़फड़ा मत
बन्द खिड़की में
व्यर्थ ज़िद्दी धूप के टुकड़े ।
है नहीं जड़
शब्द का चेतन
अर्थ देंगे गीत के मुखड़े ।
खौलते जल में
कभी तो बिम्ब उभरेगा
आँख के आकाश का ।
बुद्धि के
बेडौल पत्थर पर
चलाता चल, तर्क की छैनी ।
और कर
कुछ और
घिस-घिस कर
भोंथरी अनुभूतियाँ पैनी ।
चरमराने लग गया है
टूटने के बिन्दु तक
कठघरा यह प्यास का ।
यह घरोंन्दा घास का ,
रहेगा परिवर्त बनकर
समय के इतिहास का ।