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बिरखा-बींनणी / रेंवतदान चारण
Kavita Kosh से
लूम-झूम मदमाती, मन बिलमाती, सौ बळ खाती,
गीत प्रीत रा गाती, हंसती आवै बिरखा बींनणी।
चौमासै में चंवरी चढ़नै, सांवण पूगी सासरै
भरै भादवै ढळी जवांनी, आधी रैगी आसरै
मन रो भेद लुकाती, नैणां आंसूड़ा ढळकाती
रिमझिम आवै बिरखा बीनणी।
ठुमक-ठुमक पग धरती, नखरौ करती
हिवड़ौ हरती, बींद-पगलिया भरती
छम-छम आवै बिरखा बींनणी।
तीतर बरणी चूंदड़ी नै काजळिया री कोर
प्रेम डोर में बंधती आवै रूपाळी गिणगोर
झूठी प्रीत जताती, झीणै घूंघट में सरमाती
ठगती आवै बिरखा बींनणी।
आ परदेसण पांवणी जी, पुळ देखै नीं बेळा
आलीजा रै आंगणै में करै मनां रा मेळा
झिरमिर गीत सुणाती, भोळै मनड़ै नै भरमाती
छळती आवै बिरखा बींनणी।
लूम-झूम मदमाती, मन बिलमाती, सौ बळ खाती,
गीत प्रीत रा गाती, हंसती आवै बिरखा बींनणी।