बिरहणिकौं सिंगार न भावै।
है कोइ ऐसा राम मिलावै॥टेक॥
बिसरे अंजन-मंजन, चीरा।
बिरह-बिथा यह ब्यापै पीरा॥१॥
नौ-सत थाके सकल सिंगारा।
है कोइ पीड़ मिटावनहारा॥२॥
देह-गेह नहिं सुद्धि सरीरा।
निसदिन चितवत चातक नीरा॥३॥
दादू ताहि न भावत आना।
राम बिना भई मृतक समाना॥४॥