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बिरहणि कौं सिंगार न भावै / दादू दयाल

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बिरहणिकौं सिंगार न भावै।
है कोइ ऐसा राम मिलावै॥टेक॥

बिसरे अंजन-मंजन, चीरा।
बिरह-बिथा यह ब्यापै पीरा॥१॥

नौ-सत थाके सकल सिंगारा।
है कोइ पीड़ मिटावनहारा॥२॥

देह-गेह नहिं सुद्धि सरीरा।
निसदिन चितवत चातक नीरा॥३॥

दादू ताहि न भावत आना।
राम बिना भई मृतक समाना॥४॥