भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिसरल कोन कसूर मे / नरेश कुमार विकल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सांझक धुआँ घेरि रहल अछि
तरेगन आ चान कें।
अपने हाथ माली जारय
कली सभक मुस्कान कें।

तोड़ि-तोड़ि कें फेंकि रहल अछि
डारि सँ ककरा घूर मे
माला मे ने गाँथि रहल अछि
बिसरल कोन कसूर मे

घूर जराकऽ तापि रहल अछि
मन मन्दिर मकान कें।
अपने हाथे माली जारय
कभी सभक मुस्कान कें।
मुदा ठोर पर पूजा सभ दिन
दीप नयन सांझक बाती
सांस-सांस में चानन छिलक्य
आंजुर मे अर्पित थाती

सदिखन कयल समर्पित सभ लेल
कोंढ़-करेज परान कें।
अपने हाथे माली जारय
कली सभक मुस्कान कें।

आस निराश मुदा ने सांस सँ
छूटल कहियो प्रीत हमर
जिनगी अछि आगिक चिनगी पर
मुदा ने रूसल गीत हमर

नंदन वन हम बना रहल छी
जरैत श्मशान कें।
अपने हाथे माली जारय
कली सभक मुस्कान कें।