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बींठ (4) / सत्यनारायण सोनी
Kavita Kosh से
बनकर थेपड़ी,
छाणे
घुस गई वह
चूल्हे में
धिंगाणे।
अब सेकेगी,
फुलाएगी
गरमागरम फुलके
फिर बनकर राख
मांजेगी
जूठे बरतन सारे।
2005