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बीत न जाये बहार मालियो / बलबीर सिंह 'रंग'

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बीत न जाये बहार मालियो, मधुवन की सौगन्ध।
अधखिले उपवन की सौगन्ध।

व्यर्थ की सीमाओं में बन्द
करो मत सुख को सुलभ बयार,
करेंगे सहन किस तरह सुमन
तुम्हारा यह अनुचित व्यवहार।

दबे न क्षीण पुकार मधुकरो, गुंजन की सौगन्ध।
विहंगो क्रन्दन की सौगन्ध।
अधखिले उपवन की सौगन्ध। मालियो मधुवन की सौगन्ध।

पराजित बल के बल से
कभी न होगा अपराजित इन्सान,
करेगी भूखी-प्यासी धरा
शांति की सोम-सुरा का पान।

उतर न जाये खुमार साथियो, यौवन की सौगन्ध।
सृजन संजीवन की सौगन्ध।
अधखिले उपवन की सौगन्ध। मालियो मधुवन की सौगन्ध।

वाटिका को कर सकती ध्वस्त
तुम्हारी तनिक भयानक भूल,
देखती नन्दन वन के स्वप्न
कंटका-कीर्ण पंथ की धूल।

पथ के बनो न भार पंथियो, कण-कण की सौगन्ध।
आज के क्षण-क्षण की सौगन्ध।
बीत न जाये बहार मालियो, मधुवन की सौगन्ध।
अधखिले उपवन की सौगन्ध।