भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीते लम्हों को फिर ज़िया जाये / अर्चना जौहरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीते लम्हों को फिर ज़िया जाये
उनको कुछ याद यूँ किया जाए

यूँ तो ओढ़ी थी हमने ख़ामोशी
उसका पर नाम भी लिया जाए

उस को रखना है दिल में या कि नहीं
फ़ैसला ये भी कर दिया जाए

बारहा वह जो खाती आयी हूँ
उन्हीं ज़ख़्मों को फिर सिया जाये

जो कि वापस लिया था उस से कभी
दिल वही उसको फिर दिया जाए