भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीनती हूँ / क्रांति

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीनती हूँ गेहूँ,
बीनती हूँ चावल,
धनिया, जीरा,
मूंग, मसूर, अरहर_

पर असल में
बीनती हूँ केवल कँकर।

कहने को
अनाज बदला होता है
मेरी थाली मे हर दोपहर।