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बीमार माँ का दर्द / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मॉं तुम्हारे दॉंत नहीं हैं
थोड़ा-सा शर्बत पी लो
मैंने निकाला है इसे
अपने नन्हें हाथों से
देखो इन अंगुलियों में
अभी भी टपक रही हैं
रस की दो-चार बूंदें
यह बूंद नहीं है
प्यार है मेरा मॉं
मॉं तुम थक गयी हो
पीकर इसे सो जाओ
तुम्हारी नींद से हमें
चैन मिलता है
एक सुकून मिलता है
मिलता है बहुत सारा प्यार
और आते हैं प्यारे- प्यारे सपने।