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बीमारी / सरिता स्निग्ध ज्योत्स्ना
Kavita Kosh से
वे जो मरे
चींटे न थे
कीड़े न थे
मकोड़े न थे
मनुष्य थे पर
निर्धनता रेखा से नीचे के
इसलिए उन्हें भी
मान लीजिए
चींटा, कीड़ा या मकोड़ा
वे जो मरे
कभी बजाई थीं तालियाँ उन्होंने
हरित क्रांति के परिणाम पर
अनाजों की भरमार पर
जो बताई जाती थीं अक्सर
चुनावी प्रचार में
वे जो मरे
मरे भूख से
यह स्वीकार्य नहीं मालिक को
बताते हैं कि वे बीमार थे
भूखा कोई हो नहीं सकता
यहाँ बहुरंगे राशन कार्ड हैं
वे जो मरे
उनके पीछे रोने वाले जानते हैं
कि ग़रीबी तो सबसे बुरी बीमारी है
साथ ही वंशानुगत भी
साहब नहीं जानते तो क्या करें
लोगों को दाल-रोटी के बिना ही
प्रभु के गुण गाने की हिदायत है!