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बीस साल बाद / लोग ही चुनेंगे रंग
Kavita Kosh से
बीस साल बाद
मिले
उसका दुख
मेरा दुख
दुखों के चेहरों पर
झुर्रियाँ हैं अब
पके बाल इधर उधर
अहं और सन्देह ने किया घर
दुखों को यूँ मिलते देख
ढूँढा उसके गुस्से ने मेरे गुस्से को
उसके प्यार ने मेरे बचे प्यार को
हम लोग हिसाब किताब कर रहे
घर-परिवार का
दुख हमारे लेट गए
आपस को सहलाते
धीरे-धीरे सुखों में बदलते
अचानक हम जान रहे
दुनिया में बदला है बहुत कुछ बीस सालों में.