बुदापेस्त के पुल / कर्णसिंह चौहान
दुनाव पर बने पुल
कितने नए
कितने पुराने
बुदा और पेस्त को मिलाते हैं
पुराने नए के बीच
मेल कराते है।
इस पार तने
ये प्राचीन राजमहल
किले की दीवार
तंत्र
उस पार खड़े नए भवन
घने जंगल
परस्पर घूरते
बिसूरते
तुम्हारी बात मान जाते हैं ।
यूरोप के सांस्कृतिक वैभव की रानी
विएना से बहकर आती नदी
सदियों का अनुभव संजोए
सब जानती है ।
मकानों को महलों से अलगाती है
किलों को परसती हुई भी
राज की बातें
पेस्त को बताती है ।
बहुत सयानी है नदी
बुदा से सटकर बहती
प्यार जताती
गर्जना से बर्जती
पेस्त के चौड़े पाटों में
बच्चों को खिलाती
जंगल-बगीचों में
सुस्ताती
बुदा को भुलाती ।
ये पुल भी बड़े शातिर हैं
करते नदी की हर चाल नाकाम
कराते दो छोरों का मेल
दिलाते विएना की याद
दिखाते नदी का उद्ग्म
मन में रचते भ्रमजाल ।
यहाँ से
कुछ भी नहीं दीखती बहाव की दिशा
बेलग्राद, बुख़ारेस्त, सोफ़िया
सुनहरी रेत का काला सागर
रूस
बस दीखता है चमकीला पहाड़
इतिहास का सुंदर छोर
पश्चिम में होती हुई भोर ।