भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुद्धत्व / अनुराधा सिंह
Kavita Kosh से
शब्द लिखे जाने से अहम था
मनुष्य बने रहना
कठिन था
क्योंकि मुझे शब्दों से पहचाना जाए
या मनुष्यत्व से
यह तय करने का अधिकार नहीं था मेरे पास
शब्द बहुत थे मेरे
चटख चपल कुशल कोमल
मनुष्यत्व मेरा रूखा सूखा विरल
उन्होंने वही चुना जिसका मुझे डर था
चिरयौवन चुना शब्दों का
और चुनी वाक्पटुता
वे उत्सव के साथ थे
मेरा मनुष्य अकेला रह गया
बुढ़ाता समय के साथ
पकता, पाता वही बुद्धत्व
जो उनके किसी काम का नहीं।