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बुलडोज़र / संजय कुंदन

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यह रथ है मनु महाराज का

लौट आए हैं महान स्मृतिकार
अपने एक नए अवतार में
लौट आई हैं उनके साथ न्याय संहिताएँ

रौंद दी जाएँगी एकलव्यों की आकाँक्षाएँ फिर से
शम्बूकों के स्वप्न मलबे में बदल दिए जाएँगे

असहमति की हर आवाज़ के विरुद्ध
छेड़ दिया गया है युद्ध

जब चलता है बुलडोज़र
उस पर अदृश्य होकर
सवार रहते हैं धर्मरक्षक
पीछे-पीछे भागती आती एक अदृश्य सेना
जिसमें नंग-धड़ंग साधु भी रहते और विचारक भी
अपराधी, हत्यारे, थैलीशाह, नौकरशाह
न्यायाधीश,क़लमकार, फ़नकार
हमारे कई साथी और पड़ोसी भी

जब एक ग़रीब का आशियाना उजड़ता है,
अपनी ज़िन्दगी से हारे एक लाचार व्यक्ति
को नए सिरे से पराजित घोषित किया जाता है,
किसी को उसके अलग ईश्वर के कारण
अपमानित किया जाता है,
सेना ज़ोर-ज़ोर से जय-जयकार करती है

ताक़त हुँकार भरती है
बुलडोज़र के घड़घड़ाते पहियों में ।