भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बुलाती है मगर जाने का नईं / राहत इन्दौरी
Kavita Kosh से
बुलाती है मगर जाने का नईं
ये दुनिया है इधर जाने का नईं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुजर जाने का नईं
सितारें नोच कर ले जाऊँगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नईं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नईं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नईं