भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बूँदें / सरोज सिंह
Kavita Kosh से
स्नेह की परिधि में
तुम, मुझसे विमुख
किन्तु तुम्हारा मौन
मेरे सन्मुख रच देता है
स्नेह की परिभाषा
इस नेह को निहारता सूरज
समेट लेता है
अपनी तीक्ष्ण किरणें
और तुम...
बादलों के कान में
धीरे से कुछ कह कर
बन जाते हो आकाश
के तभी बूंदे बरसने लगतीं हैं
और मैं मिटटी सी गल कर
बन जाती हूँ धरती।