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बूढ़ा-बूढ़ी /रवीन्द्र चन्द्र घोष

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आभीं तोहरोॅ उमर की होलौं
तुतली-तुतली बोली होलौं
बच्चा जेना बोलै छै बोली
ओन्हैं तों बोलेॅ लागलेॅ ।
 
पोता-पोती हँसेॅ लागलौं
तोहरा देखी किलकेॅ लागलौं
व्हील चेयर दौड़ावै छौ
मोॅन खूब लागेॅ लागलौं ।

हम्में बेरासी तोहेॅ तेहत्तर
तोहरा सभैं बूढ़ी कहै छौं
हमरा जवान कहै छै सब्भैं
दाँतो तोहरा नंिहयें रहलौं
बूढ़ा-बूढ़ी हस्सोॅ बोलोॅ
जीवन के गुत्थी खोलोॅ।