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बेआवाज़ दुख / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
दु:ख
नदी है
गहरी
स्मृतियों की
बहती रही बेआवाज़
थकी
टूटी,अकेलेपन से
पर कहाँ
ठहरी!