भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेखुदी कहाँ ले गई हमको / मीर तक़ी 'मीर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेखुदी कहाँ ले गई हमको,

देर से इंतज़ार है अपना


रोते फिरते हैं सारी सारी रात,

अब यही रोज़गार है अपना


दे के दिल हम जो गए मजबूर,

इस मे क्या इख्तियार है अपना


कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक

शहर शहर इश्तिहार है अपना


जिसको तुम आसमान कहते हो,

सो दिलो का गुबार है अपना