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बेटा पथ ताक रहा होगा / पंकज परिमल
Kavita Kosh से
छुट्टी का समय हुआ
पहुँचूँ
बेटा पथ ताक रहा होगा
कोमल कन्धों पर बस्ते-भरी थकान लिए
कुछ अस्त-व्यस्त तो कुछ मुखड़ा भी म्लान लिए
आ बहुत निकट टुहका कुहनी का मार रहा
स्वागत करता दन्तुरित सरल मुस्कान लिए
चढ़ रही धूप
बाहर थोड़ा धूल का बगूला
फाँक रहा होगा
क़िस्से कुछ मस्ती के औ' संग- साथियों के
सब समाचार देगा जो मन में रहे रुके
मेरे पीछे उसकी कमेण्टरी चलती है
वह बोल रहा उत्फुल्लमना पर बिना रुके
थोड़ा सिर आगे कर वह
स्पीडोमीटर की गति
नाप रहा होगा
हर गाड़ी पर अपना नम्बर पढ़ता होगा
हर मुखड़े पर मेरा मुखड़ा मढ़ता होगा
इस समय सौम्य-सा बहुत नज़र जो आता है
वह कभी उग्र होकर सबसे लड़ता होगा
वह निश्छल मन तो
किसी प्रार्थना-भवन से अधिक
पाक रहा होगा