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बेटियाँ खो जाएँगी / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
सर झुकाये आने वाली,
पीढ़ियाँ पछताएँगी।
यदि नहीं जागे अभी तो,
बेटियाँ खो जाएँगी॥
न मिलेगी गोद माँ की,
ना मिलेंगी लोरियाँ।
ना कहीं दुल्हन दिखेगी,
ना उठेंगी डोलियाँ।
भाल सूने दूज पर,
राखी नहीं बँध पाएँगी।
बेटियाँ तो आदि से,
अस्तित्व हैं संसार का।
बेटियों से ही बना,
आधार है परिवार का।
ये घटाएँ नेह की हैं,
नेह ही बरसाएँगी।
अंश इनमें आपका है,
आपकी पहचान हैं।
प्यार से इनको सहेजें,
ईश का वरदान हैं।
आप इनको हौसला दो,
ये उजाले लाएँगी।