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बेटियां / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
बेटी को
विदा करते हम
अचानक बिटिया से
इतने नजदीक हो जाते हैं
कि
उसको दूर करना ही नहीं चाहते
बिटिया
चली जाती है माँ-पिता का
आंगन छोड़
पराए घर
नए लोग, नए लबादे
नये मुखोटों के साथ
नई जगह
रम जाती है
धीरे-धीरे
और
ऐसा नहीं
कि
भूल जाती हैं बेटियां
अपने माँ-बाप
नहीं भूलती बिटिया
अपना आंगन
अपना घर
और
वह खड़ा अमरूद का पेड़
जिसके फल
बचपन से लेकर
जवानी तक
बड़े चाव से खाए थे
रह-रहकर
याद आती है
बेटी की स्मृतियां
एलबम में बेटी को
निहारते माँ-बाप