बेशर्म समय में प्रेम / आनंद गुप्ता
वे हमेशा धारा के विरूद्ध तैरने वाले लोग थे
अंधियाँ उन्हें छूने से डरती थी
ज़िद पकड़ ली तो
वे आसमान को भी अपने सीने पर झुका लेते थे
पास से गुजरने पर
फूल भी उन्हें सलामी देते
दुनिया में कोमलता बचाए रखने के लिए
उन्होने हमेशा काँटों भरी राह चुनी
उनकी आँखें बेहतर दुनिया के ख्वाब बुनी
तेज हवा में जैसे
दो हथेलियाँ लौ को बुझने से बचा लेती है
वे घने अंधेरे में भी
अपने दिलों में बचा लेते थे
प्रेम की थोड़ी उजास
और उम्मीद की टिमटिमाती रोशनी
वे ऐसी चट्टानें थी
जो खुद पर घास और शैवाल उगने देने के बावजूद
अपने अंदर दावानल बचाए रखती थी
वे युद्ध ,हिंसा ,नफरत
और दुनिया के तमाम छल प्रपंच के विरुद्ध थे
इसलिए राजा,सम्राट,शासक
यहाँ तक की ईश्वर को उनसे सबसे ज्यादा खतरा था
वे दीवारों में चुनवा दिये गए
गोलियों से छलनी किए गए
वे ज़िंदा जलाए गए
सूलियों पर लटकाए गए
वे इस दुनिया में बचे उन थोड़े लोगों में से थे
जिन्हें यह आशा थी
कि वे इस दुनिया को ख़त्म होने से बचा लेंगे
जिन्होने इस बेशर्म समय में
मरने से इंकार किया था।