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बेहतर दुनिया का सपना देखते लोग / सुभाष नीरव

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बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग इस दुनिया में

जो चढ़ते सूरज को करते हैं नमस्कार

जुटाते हैं सुख-सुविधाएं और पाते हैं पुरस्कार ।


बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग

जो देख कर हवा का रुख चलते हैं

जिधर बहे पानी, उधर ही बहते हैं ।


बहुत अधिक गिनती में हैं ऐसे लोग

जो कष्टों-संघर्षों से कतराते हैं

करके समझौते बहुत कुछ पाते हैं ।


कम नहीं है ऐसे लोगों की गिनती

जो पाने को प्रवेश दरबारों में

अपनी रीढ़ तक गिरवी रख देते हैं ।


रीढ़हीन लोगों की इस बहुत बड़ी दुनिया में

बहुत कम गिनती में हैं ऐसे लोग जो

धारा के विरुद्ध चलते हैं

कष्टों-संघर्षों से जूझते हैं

समझौतों को नकारते हैं

अपना सूरज खुद उगाते हैं ।


भले ही कम हैं

पर हैं अभी भी ऐसे लोग

जो बेहतर दुनिया का सपना देखते हैं

और बचाये रखते हैं अपनी रीढ़

रीढ़हीन लोगों की भीड़ में ।