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बैल बियावै, गैया बाँझ / 59 / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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उल्लूं
मादा उल्लू सेॅ कहलकै-
सुनोॅ धानी
रात मेॅ हमरै नै
आदमियो केॅ नै सूझै छै
तभिये तेॅ उ सिनी एक दूसरा केॅ
कहतेॅ रहै छै-
उल्लू के पट्ठा।

अनुवाद:

नर उल्लू ने
मादा उल्लू से कहा-
सुन धानी
क्यों करती हो ठट्ठा
रात में उसे नहीं, तो
आदमी को भी नहीं है सूझता
तभी तो वे एक दूजे को
कहते रहते-
उल्लू का पट्ठा।