भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बोल / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
Kavita Kosh से
बोल
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल, जबां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां१ जिस्म है तेरा
बोल कि जां अब तक तेरी है
देख कि अहनगर२ की दुकां में
तुन्द३ हैं शोले, सुर्ख हैं आहन४
खुलने लगे कुफलों के दहाने५
फैला हर ज़ंजीर का दामन
बोल, ये थोडा वक़्त बहुत है
जिस्मो जबां के मौत से पहले
बोल कि सच जिंदा है अब तक
बोल कि जो कहना है कह ले
१. तना हुआ
२. लोहार
३. तेज़
४. लोहा
५. तालों के मुंह