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बोलती बूँदें, हँसते निर्झर / महेश सन्तोषी

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चले कहीं कुछ बूढ़े, कुछ जवान, जंगलों में चले,
कतारों में कई कद के खड़े, दरख़्तों से बात करें।

चलें इन समतलों से दूर कहीं,
ऊँचे, उभरे स्थलों पर चलें,
पास से, पहाड़ों से बात करें,
बात करें इन बहती, थरथराती हुई हवाओं से,
ये साथ-साथ बहा ले चलें तो कुछ दूर
इनके साथ बहें!

कल शायद बाकी न बचें
ये बोलती बूँदें, ये हँसते निर्झर,
कहीं असमय में मौन न हो जाए,
ये जलजात अनन्य स्वर
मरतीं नदियों से, निर्झरों से बात करें!