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बोलो सर्दी रानी / कमलेश द्विवेदी

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बोलो सर्दी रानी क्यों तुम हमें सताती हो।
हमको पीड़ा पहुँचाकर तुम क्या सुख पाती हो।

थर-थर थर-थर काँपे तन-मन,
जब देखें हम पानी।
रोज नहाने के पहले ही,
मर जाती है नानी।
बर्फीले पानी से हमको तुम नहलाती हो।
बोलो सर्दी रानी क्यों तुम हमें सताती हो।

रोज तुम्हारे कारण ओढें,
कम्बल और रजाई.
कोट-पैंट-स्वेटर हम पहनें
और लगायें टाई.
इतने कपड़ो के भीतर भी तुम आ जाती हो।
बोलो सर्दी रानी क्यों तुम हमें सताती हो।

कोई और सताये तो हम,
उसको मज़ा चखा दें।
टीचर जी से करें शिकायत,
कान गरम करवा दें।
कैसे तुम्हें सजा दें तुम तो हाथ न आती हो।
बोलो सर्दी रानी क्यों तुम हमें सताती हो।