किसी स्कूल के पाठ्य-पुस्तक में
नहीं पढ़ाई जाती है जीवनी बौड़म दास की
किसी नगर के चौराहे पर
नहीं लगाई गई है प्रतिमा बौड़म दास की
वे एम. आई. टी. से एम. बी. ए. नहीं थे
इसलिए वित्त मंत्री उन्हें नहीं जानते हैं
वे हार्वर्ड से पी.एच.डी. नहीं थे
इसलिए प्रधानमंत्री भी उन्हें नहीं जानते हैं
वे वाद के खूँटे से नहीं बँधे थे
इसलिए दक्षिणपंथी या वामपंथी भी उन्हें नहीं जानते हैं
उन्होंने मुंबइया फ़िल्मों में
कभी कोई भूमिका नहीं की
जिम में जा कर 'सिक्स-पैक' नहीं बनाया
न वे औरकुट या फ़ेसबुक पर थे
न व्हाट्स-ऐप या ट्विटर पर
यहाँ तक कि ढूँढ़ने पर भी उनका
कोई ई-मेल अकाउंट नहीं मिलता
इसलिए आज का युवा वर्ग भी
उन्हें नहीं जानता है
किंतु जो उन्हें जानते थे
वे बताते हैं कि बौड़म दास ने
राशन-कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए
कभी रिश्वत नहीं दी
इसलिए न उनके पास लाइसेंस था न राशन कार्ड
बस या रेलगाड़ी में चढ़ने के लिए
उन्होंने कभी धक्का-मुक्की नहीं की
वे हमेशा क़तार में खड़े रहते थे
इसलिए सबसे पीछे छूट जाते थे
उन्होंने कभी किसी का हक़ नहीं मारा
कभी किसी की जड़ नहीं काटी
कभी किसी की चमचागिरी नहीं की
कभी किसी को 'गिफ़्ट्स' नहीं दिए
उनका न कोई 'जुगाड़' था न 'जैक'
इसलिए वे कभी तरक़्क़ी नहीं कर सके
नौकरी में आजीवन उसी पोस्ट पर
सड़ते रहे बौड़म दास
उनके किसी राजनीतिक दल से
सम्बन्ध नहीं थे
उनकी किसी माफ़िया डाॅन से
वाकफ़ियत नहीं थी
चूँकि वे अनाथालय में पले-बढ़े थे
उन्हें न अपना धर्म पता था
न अपनी जाति
प्रगति की राह में
ये गम्भीर ख़ामियाँ थीं
जीवन में उन्होंने कभी
मुखौटा नहीं लगाया
इसलिए इस समाज में
आज के युग में
सदा 'मिसफ़िट' बने रहे
बौड़म दास
उनके पास एक चश्मा था
वृद्धावस्था में उन्होंने
एक लाठी भी ले ली थी
वे बकरी के दूध को
स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम बताते थे
और अक्सर इलाक़े में
इधर-उधर पड़ा कूड़ा-कचरा बीन कर
कूड़ेदान में फेंकते हुए देखे जाते थे
इसलिए इक्कीसवीं सदी में
जानने वालों के लिये
उपहास का पात्र बन गए थे
बौड़म दास
उनके जन्म-तिथि की तरह ही
उनकी मृत्यु की तिथि भी
किसी को याद नहीं है
दरअसल इस युग के
अस्तित्व के राडार पर
एक 'ब्लिप' भी नहीं थे
बौड़म दास
मोहल्ले वालों के अनुसार
बुढ़ापे में अकसर राजघाट पर
गाँधीजी की समाधि पर जा कर
घंटों रोया करते थे
बौड़म दास
क्या आप बता सकते हैं कि
ऐसा क्यों करते थे बौड़म दास?