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ब्याधा / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
चिड़ियां जियै छै
उड़ै लेली
चिड़िया उड़ै छै
जियै लेली
छूट भी छै
चिड़िया केॅ उड़ै के
उड़ोॅ
जतनां उड़ेॅ सकेॅ ऊ
ओकरा कोय नै रोकतै
अपनोॅ पंख फैलाबै सें
आसमान तेॅ ओकरोॅ अपनोॅ छेकै
नदी सब भी बहै छै ओकरैह लेली
झरना बहै छै ओकरैह लेली
सौसे जंगल छेकै ओकरे
हवा दै छै, हवा ओकरा
सभ्भैं चाहै छै कि
चिड़िया बनलोॅ रहॅे चिड़िया
अपनोॅ जिनगी भर
खाली एक ब्याधा केॅ छोड़ी केॅ।