भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भ' रहल आरम्भ / शारदा झा
Kavita Kosh से
भेटल नबका दिन
पोखरिक भीर पर
भीजल दूबि सँ
रतुका हाल चाल पुछैत
घाट पर ठाढ़ भेल,
सोन सन हिलकोरक आनंद लैत
रक्ताभ केने अकास कपोल
भास्करक प्रतीक्षा मे
कउआ, मेना, बगरा, कोइली
संग दैत गाछ-बिरिछ केँ
फसौने अछि पुरबा के केश
नै सोझराब' द' रहल छै
बँस्बिट्टी में ओझरायल
ओकर नबका हरियर फीता
आ सौंसे टोल उधियेने छै बसात
छोराब' लेल अपन जुट्टी
चार पर लटकल कदीमा
बारीक कोन्टा पर फुलैल अड़हुल आ कनैल
मजरल आम आ कटहरक मोंछ सब
केने अछि श्रृंगार अइ भोरक
आ कोनो दोसर टोल सँ आबि रहल
समदाउनक ध्वनि
क' रहल अछि आश्वश्त
कतहु न'ब जीवनक
भ' रहल छै आरम्भ
शुभे हे शुभे!