भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भक्ति चेतावनी / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौल करार विसारत हो, कित लागत बात वरावरु रे।
मालिक नाम गयंदहि छोड़ि, बखानत पाट पटम्बरु रे॥
संपति है वन संपति ढेरु, कहो कोउ लेइ गयो वपुरे।
धरनी नर-देह कहाफल जो, नहि जानु अलाह अकब्बरु रे॥11॥