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भजन / चन्द्रमणि

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हरि हे ! लैह शरण बिलमाय।
पाथर चुनि चुनि महल बनाओल
माथा धुनि-धुनि कउड़ी कमाओल
कंचन काया तों निरमओलह
से गेलहुँ बिसराय।। हरि हे ....

सुखक समय बस सुखक सेहन्ता
दुःखकेर क्षण सम्बल भगवन्ता
सबदिन मन रहलै बौरएले
जगसँ गेलहुँ अघाय।। हरि हे .....

जाएब ककर शरण तजि तोहर
अधम पतित प्रभु-नाम धरोहर
जौं पापी तइयो सुत तोहरे
से सुनि एलहुँ नुकाय।। हरि हे .....

मन मन्दिर मे चोर समाओल
ससरि मनोरथ छलबल आओल,
दिन-दिन तपबल-हीन ‘चन्द्रमणि’
शरणागत निरूपाय।। हरि हे ......