भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भटकता ही रहता / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
तृषा रचती रहती है
तृप्ति
तृप्ति में मर जाती है
तृषा
भटकता ही रहता है फिर भी
अपने ही मरने की
तलाश में
मृग !
—
25 दिसम्बर 2009